सादर जय जिनेन्द्र, खमत खामना


सादर जय जिनेन्द्र, 

अनेक अवसरों पर मन की सीमायें खो जाती है, एक पल में अनेको ह्रदय दुखाये जा सकते हैं,ऐसे ही किसी अवसर पर मैंने आपका ह्रदय दुखाया हो , जाने -अनजाने मुझसे कोई भूल/गलती हुई हो, आपको दुःख हुआ हो,
तो संवत्सरी के पावन पर्व पर , सरल अंतःकरण से और मन,वचन ,काया से , खामत खामना /क्षमा याचना करता हूँ.
मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है की आप मुझे क्षमा कर देंगे.
संवत्सरी का सार है इस कविता में जिसके रचयिता है
- आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
" संवत्सरी महापर्व "
आत्मा की पोथी पढ़ने का, यह सुन्दर अवसर आया है |
जीवन की पोथी पढ़ने का, यह सुन्दर अवसर आया है ||
सोपान यही है चढ़ने का, मस्तिष्क मनुज का पाया है |
संवत्सर का सन्देश सुनें, निर्मल मल निर्मल काया है ||
१. जीवन की पोथी के पहले पन्ने में मैत्री मंत्र लिखो |
सिर दर्द समुल मिटाने का, यह सुन्दर अवसर आया है ||
२. भूलो भूलो उसको भूलो जो कटुता का व्यवहार हुआ |
जीवन को सरस बनाने का, यह सुन्दर अवसर आया है ||
३. खोलो अब वैर विरोधों की, गांठें जो घुलती आई है |
तन मन को स्वस्थ बनाने का, यह सुन्दर अवसर आया है ||
४. क्यों खोज शान्ति की बाहर में, वह अपने मन की छाया है |
उपशम की शक्ति बढ़ाने का, यह सुन्दर अवसर आया है |
५. सहना सीखो, कहना सीखो, रहना सीखो दिनचर्या में |
मृदुता की ज्योति जलाने का, यह सुन्दर अवसर आया है ||
६. हो वार्षिक आत्म निरीक्षण भी, क्या खोया है, क्या पाया है |
आत्मा का वीर्य जगाने का, यह सुन्दर अवसर आया है ||
७. जो अंतर्दर्शन पायेगा, वह " महाप्रज्ञ " कहलायेगा |
अपनी आत्मा को पाने का यह सुन्दर अवसर आया है ||

Puglia Family
Malchand & Jyoti 
Satish  Prem & DALIM
Naveen & Kavita 
Harish
Rachana


Comments